उत्तराखंड

एसआरएचयू (SRHU) जॉलीग्रांट (jollygrant) ने जल संरक्षण की दिशा में एक और कदम बढ़ाया, कैंपस में नवनिर्मित 1.5 लाख लीटर क्षमता के जल संरक्षण टैंक का औपचारिक उद्घाटन

देहारादून: शिक्षा, स्वास्थ्य व सामाजिक विकास के क्षेत्र में आयाम स्थापित कर चुका स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) Swami Ram Himalayan University (SRHU) जॉलीग्रांट (jollygrant) जल व पर्यावरण संरक्षण (water and environmental protection) के क्षेत्र में भी एक मॉडल विश्वविद्यालय के रुप में पहचान कायम कर चुका है। गुरुवार को एसआरएचयू (SRHU) जॉलीग्रांट (jollygrant) ने जल संरक्षण की दिशा में एक और कदम बढ़ाया। कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने कैंपस में नवनिर्मित 1.5 लाख लीटर क्षमता के जल संरक्षण टैंक का औपचारिक उद्घाटन किया। कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने बताया कि राष्ट्रीय पुस्कार विजेता ‘उत्तराचंल कूप’ तकनीक से इस टैंक का निर्माण किया गया है। प्रोजेक्ट को सफल बनाने में सलाहाकार इंजीनियर एचपी उनियाल, आरपीएस रावत, नितेश कौशिक, गिरीश उनियाल, ऋषभ धस्माना, जितेंद्र सिंह ने सहयोग दिया। इस दौरान कुलसचिव डॉ.सुशीला शर्मा, आरडीआई निदेशक बी.मैथिली, डॉ.अशोक देवराड़ी, डॉ.सीएस नौटियाल मौजूद रहे।

सालाना 9 लाख 45 हजार लीटर पानी की होगी बचत

सलाहाकर इं.एचपी उनियाल ने बताया कि इस टैंक से एसआरएचयू करीब सालाना सालाना 9 लाख 45 हजार लीटर पानी की बचत करेगा। दरअसल, नर्सिंग, मेडिकल और ग्राम्य विकास संस्थान के 119 शौचालय और 138 नलों में फ्लशिंग और सफाई के लिए रोजाना करीब 3000 लीटर पानी (सालाना 9.45 लाख) की जरुरत होती है। इस जरुरत को पूरा करने के लिए करीब 19 वर्षों की रिपोर्ट का अध्ययन किया गया। इसके बाद 1.5 लाख लीटर क्षमता के जल संरक्षण टैंक का निर्माण करवाया गया। मेडिकल कॉलेज और नर्सिंग कॉलेज के रुफटॉप (करीब 9000 स्केवयर फीट एरिया) से वर्षा जल संरक्षित किया जाएगा।

उत्तरांचल कूप तकनीक का दोहरा फायदा

वाटसन के नितेश कौशिक ने बताया कि उत्तरांचल कूप तकनीक से निर्मित जल संरक्षण टैंक का दोहरा फायदा है। सालाना 9 लाख 45 हजार लीटर पानी की बचत के साथ व 01 करोड़ 57 लाख लीटर पानी को रिचार्ज किया जाता है, जो वाटर लेवल को कायम रखने में सहायक होता है।

ऐसे काम करती है उत्तरांचल कूप तकनीक

कैंपस में वर्षा जल को विभिन्न विधियों द्वारा संचय किया जाता है।

  • प्रथम चरण में कैंपस में वर्षा के जल को रेन वाटर पाइप के द्वारा एकत्रित कर उसे एक चौम्बर में डाला जाता है। इस चौम्बर में एक जाली लगी होती है, जिसमें घास-फूस व पत्ते आदि जल से अलग हो जाते हैं।
  • दूसरे चरण में, जल चौम्बर के अंदर जाली से छनकर पाइप के द्वारा फिल्टर टैंक में पहुंचाया जाता है।
  • तीसरे चरण में, पानी फिल्टर टैंक से होते हुए फिल्टर मीडिया (विभिन्न आकारों में रेत-रोड़ी) से होकर साफ होते हुए तीसरे चौम्बर में एकत्रित होता है।
  • चौथे चरण में, जल फिल्टर टैंक से पंप (मोटर) की मदद से फ्लशिंग या सफाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके अतिरिक्त शेष पानी को दूसरी लाइन की मदद से रिचार्ज पिट या रिचार्ज बोर वेल के अंदर भेजा जाता है। जिससे कि इस जल को जमीन के अंदर संचयन करते हैं। जो कि वाटर लेवल को कायम रखने में सहायक होता है।

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