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हर साल आत्महत्या दर बढ़ती जा रही है, यह एक खतरनाक संकेत है।

इंदौर: देश में एक घंटे में लगभग 18 लोग एवं पूरे दिन में लगभग 420 लोग और यदि यही आंकड़ा एक साल में देखें तो 1.5 लाख से ज्यादा लोग आत्महत्या कर अपने जीवन का अंत करते हैं। यह दर हर साल बढ़ती जा रही है। वर्ष 2020 में यह दर 11.3 हो गई है जो एक खतरनाक संकेत है। वर्ष 2020 में 153052 आत्महत्या दर्ज की गई जो वर्ष 2019 में हुई आत्महत्या 139123 से लगभग 15000 ज्यादा हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो एवं अन्य स्त्रोतों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर आत्महत्या की दर कम करने हेतु इसके कारण एवं नियंत्रण पर रिसर्च इंदौर के एडवोकेट पंकज वाधवानी ने रिसर्च किया है। एडवोकेट वाधवानी के मुताबिक आत्महत्या के विभिन्न आंकड़ों के अध्ययन करने से यह पता चलता है कि आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा महाराष्ट्र उसके उपरंत तमिलनाडु और मध्यप्रदेश तीसरे नम्बर पर है। अधिवक्ता वाधवानी के मुताबिक आत्महत्या के कारणों की विवेचना करने पर यह ज्ञात होता है कि लगभग 33.8 प्रतिशत आत्महत्या पारिवारिक समस्याओं को लेकर एवं दूसरा सबसे बड़ा कारण 18 प्रतिशत बीमारी है। इस प्रकार 50 प्रतिशत मामले पारिवारिक समस्या और बीमारी से मिलकर बने हैं।

तीसरा बड़ा कारण शराब अथवा नशे का सेवन छह प्रतिशत, विवाह संबंधित समस्याएं पाँच प्रतिशत, 4.4 प्रतिशत प्रेम संबंधी समस्याएं, दिवालिया होना 3.4 प्रतिशत, बेरोजगारी तीन प्रतिशत, परीक्षा में असफल होना 1.4 प्रतिशत, प्रोफेशनल अथवा कैरियर समस्या 1.2 प्रतिशत, गरीबी 1.2 प्रतिशत, मृत्यु का भय 0.9 प्रतिशत, संपत्ति का विवाद 0.9 प्रतिशत, अवैध संबंध 0.5 प्रतिशत, सामाजिक अपमान 0.4 प्रतिशत, नपुंसकता 0.2 प्रतिशत एवं 20 प्रतिशत ऐसे मामले जिसके कारण ज्ञात नहीं हैं। इस प्रकार यदि आत्महत्या के कारणों को गौर से देखा जाए तो पारिवारिक समस्याओं एवं बीमारी की वजह से सबसे ज्यादा 50 प्रतिशत से ज्यादा आत्महत्या का कारण बनता है। इसके लिए परिवार समसया निवारण केंद्रों की स्थापना वार्ड स्तर पर अथवा और अधिक निचले कॉलोनी अथवा मोहल्ला स्तर पर किए जाने की आवश्यकता महसूस की गई है। अधिवक्ता पंकज वाधवानी बताते हैं कि आत्महत्या करने वालों के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर यह ज्ञात होता है कि दैनिक वेतन कमाने वाले वेतन भोगी 24.8 प्रतिशत, स्वरेाजगार करने वाले 11.3 प्रतिशत तथा घेरलू महिलाओं 14.3 प्रतिशत का आंकड़ा भी 50 प्रतिशत करने वाले व्यक्तियों पर केंद्रित होकर नीति का निर्माण करना होगा।

एनसीआरवी के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि आत्महत्या करने वालों में रिटायर्ड व्यक्तियों की संख्या मात्र एक प्रतिशत है किंतु विद्यार्थी का प्रतिशत 8.2 एवं प्रोफेशनल तथा वेतन भोगी व्यक्ति 10.2 प्रतिशत आत्महत्या कर रहे हैं। रिसर्च रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अशिक्षित व्यक्ति 12.6 प्रतिशत, प्राइमरी लेवल तक पड़े हुए व्यक्ति 15.6 प्रतिशत एवं मिडिल लेवल तक पढ़े हुए व्यक्ति 19.5 प्रतिशत। इस तरह लगभग 47 प्रतिशत आत्महत्या करने वाले व्यक्ति या तो अनपढ़ हैं अथवा कम पढ़े लिखे हैं। स्नातक स्तर के व्यक्ति चार प्रतिशत एवं प्रोफेशनल कोर्स किए हुए व्यक्ति सिफ्र 0.3 प्रतिशत है, जो आत्महत्या करते हैं। इसीलिए आत्महत्या को हतोत्साहित करने की बनाने वाली नीति में अनपढ़ एवं कम पढ़े लिखे व्यक्तियों पर केंद्रित कर योजना बनाई जानी चाहिए जिससे कि आत्महत्या जैसी कुरीति पर नियंत्रण किया जा सके।

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