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बढ़ती गर्मी में महंगाई का पारा भी चढ़ गया, इन्फ्लेशन रेट(Inflation Rate) बढ़कर 6.95% हो गया

नई द‍िल्‍ली: पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने के बाद अब आम आदमी को महंगाई के मोर्चे पर तगड़ा झटका लगा है। बढ़ती गर्मी में महंगाई का पारा भी चढ़ गया है। मार्च में रिटेल इन्फ्लेशन रेट (Inflation Rate) बढ़कर 6.95% हो गया, यह पिछले 17 महीने में सबसे अधिक है। यानी मार्च में महंगाई ने पिछले 17 महीने का र‍िकॉर्ड तोड़ द‍िया है। इससे पहले खुदरा महंगाई दर फरवरी में 6.07 प्रतिशत पर थी। यह जानकारी मंगलवार को जारी सरकारी आंकड़ों से पता चलता है।

मार्च में रिटेल इन्फ्लेशन (Inflation Rate) में उछाल खाने-पीने का सामान महंगा होने के कारण आया है। मार्च में खुदरा खाद्य महंगाई दर 7.68 प्रत‍िशत रही। इससे पहले फरवरी में यह 5.85 प्रतिशत थी। यह लगातार तीसरा महीना है जब खुदरा मुद्रास्फीति आरबीआई (RBI) के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है। खुदरा महंगाई में इजाफा सीधे तौर पर आरबीआई की मौद्रिक नीति को प्रभावित करता है। 8 अप्रैल को 2022-23 के पहली द्विमासिक मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए आरबीआई ने पॉलिसी दरों को जस का तस रखने का फैसला किया था। लेकिन आरबीआई ने महंगाई दर का अनुमान बढ़ाते हुए संकेत दिया था कि रुझान ऐसे ही बने रहे तो उसे मार्केट से नकदी समेटने की पहल करनी पड़ सकती है। आरबीआई ने भी 2022-23 के लिए महंगाई दर के अनुमान को बढ़ाकर 5.7 फीसदी किया था। लेकिन अब लगातार तीन महीने खुदरा महंगाई के छह फीसदी से ऊपर रहने से इस बात के आसार बन गए हैं कि अगली बैठक में आरबीआई रेपो रेट में बढ़ोतरी कर सकता है।

आपको बता दें आरबीआई ने इंफ्लेशन रेट के ल‍िए 6% की ऊपरी लिमिट तय की हुई है। मार्च में सबसे ज्‍यादा तेजी खाने के तेल और सब्‍ज‍ियों के भाव में आई है। केंद्रीय बैंक अपनी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा में मुख्य रूप से खुदरा मुद्रास्फीति के आंकड़ों पर गौर करता है।

हालांकि महंगाई दर पर नजर रखने वाली ज्यादातर एजेंसियों का मानना है कि खुदरा महंगाई में यह इजाफा अपेक्षित था। रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण सप्लाई चेन प्रभाव‍ित हुई। इस कारण ग्लोबल लेवल पर अनाज उत्पादन, खाद्य तेलों की आपूर्ति और उर्वरक निर्यात पर असर पड़ा है। इस कारण खाने-पीने की चीजों के भाव में तेजी आई है। पाम ऑयल के रेट में इस साल करीब 50% की तेजी आई है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यूक्रेन-रूस वॉर के साथ ही क्रूड ऑयल के दाम 139 डॉलर प्रति बैरल के रिकॉर्ड लेवल तक पहुंच जाना है। क्रूड की महंगाई के चलते न केवल देश का आयात बिल बढ़ा है, बल्कि तेल कंपनियों ने पेट्रोल, डीजल और गैस कीमतों में लगातार कई दौर की बढ़ोतरी की है। पेट्रोल-डीजल की महंगाई का गुड्स ट्रांसपोर्ट पर भी असर पड़ा है। इससे फल-सब्जियों और ज्यादातर कंज्यूमर गुड्स के दाम बढ़े हैं।

CPI क्या होता है?

दुनियाभर की कई अर्थव्यवस्थाएं महंगाई को मापने के लिए WPI (Wholesale Price Index) को अपना आधार मानती हैं। भारत में ऐसा नहीं होता। हमारे देश में WPI के साथ ही CPI को भी महंगाई चेक करने का स्केल माना जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक और क्रेडिट से जुड़ी नीतियां तय करने के लिए थोक मूल्यों को नहीं, बल्कि खुदरा महंगाई दर को मुख्य मानक (मेन स्टैंडर्ड) मानता है। अर्थव्यवस्था के स्वभाव में WPI और CPI एक-दूसरे पर असर डालते हैं। इस तरह WPI बढ़ेगा, तो CPI भी बढ़ेगा।

रिटेल महंगाई की दर कैसे तय होती है?

रिटेल महंगाई मापने के लिए कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मैन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें होती हैं, जिसकी रिटेल महंगाई की दर तय करने में अहम भूमिका होती है। करीब 299 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है।

अमेरिका में 40 साल की ऊंचाई पर महंगाई

फूड, गैसोलीन, हाउसिंग और अन्य जरूरत की चीजें महंगी होने की वजह से अमेरिका में महंगाई 8.5% पर पहुंच गई है। श्रम विभाग ने मंगलवार को कहा कि महंगाई की यह पिछले 40 सालों में साल-दर-साल आधार पर सबसे बढ़ी बढ़ोतरी है।

इससे पहले दिसंबर 1981 में साल-दर-साल आधार पर महंगाई इतनी बढ़ी थी। महंगाई बढ़ने की वजह सप्लाई चेन की अड़चन, मजबूत कंज्यूमर डिमांड और रूस-यूक्रेन जंग की वजह से ग्लोबल फूड और एनर्जी मार्केट की खराब हुई स्थिति है। फरवरी से तुलना करने पर मार्च में महंगाई 1.2% बढ़ी है।

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