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यारिया 2: आपको रुला देगी दिव्या खोसला की फिल्म…

दुलकर सलमान, फहाद फासिल, निविन पॉली और नजरिया नजीम जैसे कलाकारों की नौ साल पहले रिलीज हुई एक मलयालम फिल्म है, ‘बैंगलोर डेज’। बजट सिर्फ आठ करोड़ रुपये और कारोबार लागत के पांच गुना से भी ज्यादा यानी करीब 45 करोड़ रुपये। कहानी ये दो भाइयों और एक बहन के आपसी रिश्तों की तो है ही, इनकी अपनी अपनी अतरंगी प्रेम कहानियों की भी है। बरसों पहले स्नेहा उल्लाल को ऐश्वर्या राय बच्चन से मिलती जुलती शक्ल के चलते सुपरस्टार बनाने की कोशिश कर चुकी निर्देशक जोड़ी राधिका राव और विनय सप्रू ने इसी मलयालम फिल्म की रीमेक बनाई है, ‘यारियां 2’। एक अच्छी फिल्म, खराब प्रचार रणनीति के चलते कैसे नुकसान उठाती है, मार्केटिंग की कक्षाओं में उसकी अच्छी केस स्टडी बन सकती है फिल्म, ‘यारियां 2’।

सीक्वल के ठप्पे का दाग
फिल्म ‘यारियां 2’ के साथ जो सबसे बड़ी दिक्कत है वह इसका नाम ही है। सीक्वल बनाने की जिद में किसी भी कहानी को किसी भी नाम के साथ फिट कर देने की बजाय अगर इस फिल्म का कोई अच्छा सा, रचनात्मक नाम रखा गया होता और इसका प्रचार दो भाइयों व एक बहन की साथ साथ चलती प्रेम कहानियों के तौर पर किया गया होता तो इस पारिवारिक मनोरंजक फिल्म का बॉक्स ऑफिस परिणाम ही कुछ और होता। फिल्म ये राजश्री ब्रांड की है, प्रचार इसका अनुराग कश्यप टाइप फिल्म की तरह कर दिया गया है। पोस्टर में गांजा पीती लड़की को दिखाने की जरूरत ही नहीं थी। दिव्या खोसला का किरदार गंजेड़ी है भी नहीं फिल्म में। अपने पति की दिवंगत गर्लफ्रेंड के घर में अपने पति को सम्मान दिलाने की कोशिश करती एक पत्नी की मार्मिक कहानी इस पोस्टर के चक्कर फिल्म देखने से पहले कुछ और ही समझ आती है। फिल्म ‘यारियां 2’ की असल ताकत इसकी वे महिला कलाकार हैं, जिन्हें न तो पोस्टर में कहीं रखा गया है और न ही फिल्म की रिलीज से पहले उन्हें लेकर कहीं किसी ने बात ही की है।

शिमला से मुंबई पहुंची कहानी
कहानी हिमाचल प्रदेश की है। एक मां अपनी लाडली को सौंदर्य प्रतियोगिता जिताने और साथ ही उसकी शादी कराने के लिए भी जो कुछ कर सकती है, कर रही है। बेटी सामान्य नहीं है। उसका बीमारी का इतिहास है। और, जो उससे शादी करने आया है, वह भी अपना एक अतीत लेकर आया है। इस युवती के दो चचेरे भाई हैं। एक बाइकर है। दूसरा कहीं साधारण सी नौकरी कर रहा है। दोनों को बुलावा जाता है। शादी होती है और कहानी मुंबई आ जाती है। यहां एक बंद कमरे में छुपी यादें हैं। जमाने की रफ्तार से भागती एक एयर होस्टेस की अपने बॉयफ्रेंड को जलाने के लिए एक आम लड़के को इस्तेमाल करने की कोशिशें हैं। और है, एक खूबसूरत सी लड़की जो वीटी स्टेशन पर टिकट बांटती है। आईवी लीग की यूनिवर्सिटी में एडमिशन पाती है और फिर भी चाहती है कि उसे प्यार करने वाला उसे रोक ले।

बिखरी पटकथा सबसे कमजोर कड़ी
फिल्म ‘यारियां 2’ की पटकथा बिखरी बिखरी सी है और उसे समेटने के लिए राधिका राव और विनय सप्रू ने फिल्म का पहला हिस्सा करीने से व्यवस्थित नहीं किया है। फिल्म यूं लगता है जैसे मुंबई की लोकल ट्रेन की तरह भाग रही है। पटरियां भी कहानी वैसे ही बदलती है, खटर खटर, खटर, खटर। लेकिन, राधिका राव और विनय सप्रू का टी सीरीज में अपना एक अलग रौला रहा है। फ्रेम में जो कुछ भी दिख रहा है, वो सब ये दोनों खुद ही सजाना चाहते हैं। कपड़े, स्टाइलिंग से लेकर बेक्ड समोसा, डायट कोक और रे बैन का चश्मा तक सब। डिज्नी के फैंटेसी लैंड से दिखते फ्रेम बनाने की कोशिश में राधिका और विनय सजावट की अति कर देते हैं और इसी के चलते परदे पर जो कुछ दिखता है, उसका दर्शकों से रिश्ता जुड़ने में बहुत ज्यादा समय लग जाता है। नकली टाइप की दुनिया में असली जैसी कहानी सजाने की जिद की बजाय अगर राधिका और विनय ने सिर्फ निर्देशन पर ध्यान दिया होता और ये देखा होता कि हवा में उड़ती मोटरसाइकिल कितनी देर तक उड़ती ठीक लगेगी, तो शायद फिल्म के हित में होता।

दिव्या और मीजान का असरदार अभिनय
दिव्या खोसला कुमार फिल्म की हीरोइन है और फिल्म ‘यारियां’ का पूरा आभामंडल उन्हीं का है। फिल्म के पहले हिस्से में अटक अटक कर आगे बढ़ता उनका अभिनय फिल्म के दूसरे हिस्से में अपनी रवानी पर आता है। दिव्या खोसला के बारे में मैं पहले भी कह चुका हूं कि वह मौजूदा दौर की अनन्या पांडे, सारा अली खान जैसी तमाम अभिनेत्रियों से कहीं बेहतर कलाकार हैं, बस उन्हें सही किरदार और नया निर्देशन मिलने की जरूरत है। मीजान जाफरी में भी हिंदी सिनेमा की होप दिखती है। उनकी कद काठी. आवाज और आंखें प्रभावी हैं। इकरूह अवस्थी बनीं अनस्वरा राजन के साथ उनकी जोड़ी भी कमाल दिखती है। लाडली के पति बने यश दासगुप्ता और दूसरे कजिन बने पर्ल वी पुरी ने भी अपनी अपनी जगह कोशिशें अच्छी की हैं।

अनस्वरा और भाग्यश्री ने जीता भरोसा
फिल्म ‘यारियां’ की खोज हैं दो नए चेहरे। अनस्वरा की ये पहली हिंदी फिल्म है और उनकी देहयष्टि हिंदी सिनेमा की प्रेम कहानियों के लिए बिल्कुल सही है। अभिनय भी उनका अच्छा है। दिव्या खोसला और अनस्वरा के अलावा फिल्म ‘यारियां’ में एक और अभिनेत्री ने अपनी तरफ ध्यान खींचने में सफलता पाई है और वह हैं राजलक्ष्मी के किरदार में भाग्यश्री बोरसे। किरदार उनका एक गाने और कुछ सीन्स का ही है लेकिन इतने भर में भाग्यश्री ने फिल्म के भाग्य जगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। वरीना हुसैन का किरदार थोड़ा और जमाया जा सकता था और तब शायद उनकी मादक अदाएं अपना असर छोड़ पाने में और कामयाब होतीं।

अरिजीत और जुबिन के दो बेहतरीन गाने
फिल्म के सहायक कलाकारों में लिलेट दुबे और सुधीर पांडे जाने पहचाने चेहरे हैं और अपनी जिम्मेदारियों को दोनों निभाते भी अच्छे से हैं। फिल्म टी सीरीज की है तो गाने इसमें भरपूर होने ही हैं, खासतौर से अगर निर्देशन राधिका राव और विनय सप्रू का है तो। और, ये इफरात में ठूंसे गए गाने ही फिल्म के कलाकारों को अपने अभिनय का स्थायी भाव लेने से रोकते रहते हैं। जितनी जमा कर फिल्म इंटरवल के बाद शूट की गई है, वही तरीका अगर इंटरवल के पहले वाले हिस्से का भी रहा होता तो फिल्म कमाल होती। अरिजीत सिंह का गाना ‘ऊंची ऊंची दीवारें’ और जुबिन नौटियाल का गाया ‘बेवफा तू’ बहुत ही अच्छे गाने बन पड़े हैं। बाकी आठ गानों में अधिकतर पंजाबी ठसके हैं और एक हिंदी फिल्म का दर्शकों से रिश्ता बनाने में बिल्कुल मदद नहीं करते, यूट्यूब पर टी सीरीज के वीडियो व्यूज बढ़ाने में ये मदद करते हों तो और बात है। रवि यादव की सिनेमैटोग्राफी वैसी ही है जैसी वह राधिका और विनय के म्यूजिक वीडियोज में करते आए हैं। फिल्म के पहले हिस्से की एडीटिंग थोड़ी बेहतर हो सकती थी। कम से कम साउंड के ऑडियो के फेड इन, फेड आउट पर ध्यान होता है तो दर्शकों को एक दृश्य से दूसरे दृश्य में जाते समय इतने झटके नहीं लगते।

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