राजनीति

राजस्थान: कृष्णा पूनिया और सुमित्रा पूनिया में होगी जंग, पढ़े पूरी खबर

राजस्थान में एक सीट ऐसी भी है जहां चुनावी हार-जीत का फ़ैसला ‘गाज़ा पट्टी’ तय करती है. राजस्थान चुनावों में गाजा पट्टी का जिक्र आने पर एक बारगी आपका चौंकाना लाजमी है.आखिर इज्राइल-हमास और गाजा पट्टी का राजस्थान के चुनाव से क्या कनेक्शन हैं । लेकिन यहां के लोगों के लिए ‘गाजा पट्टी’ के मायने बिल्कुल साफ हैं. इन्हें इज्राइल की जंग से नहीं बल्कि राजस्थान के चुनावों में सिर्फ और सिर्फ सादुलपुर सीट से सरोकार है. दरअसल, चुरू जिले की सादुलपुर सीट में कुछ गांवों को यहां बोल-चाल की भाषा में दशकों से ‘गाजा पट्टी’ कहा जाता है. चुरू जिले के प्रशासनिक या रेवेन्यू रिकॉर्ड में गाजा पट्टी नाम कहीं दर्ज नहीं लेकिन सादुलपुर-राजगढ़ में किसी से पूछ लीजिए कि गाजा पट्टी कहां है, तो जबाव मिलेगा.

जहां जातिगत समीकरण में एक गोत्र के समुदाय की बहुलता है. इन गांवों में पार्टियों के आधार पर नहीं बल्कि इनकी पूछ-परख के आधार पर तय होता है कि यहां के वोट किसको जाने हैं. पिछले कई चुनावों से इन गांवों के लोगों ने अपना एक मुश्त वोट बैंक बना रखा है, जिसे साधने और तोड़ने की कोशिश में राजनीतिक पार्टियां और उम्मीदवार लगे रहते हैं. सादुलपुर क्षेत्र के इन गांवों में पूनिया गोत्र के जाट समुदाय के लोगों की बहुलता है और आपस में राजनीतिक एकजुटता और प्रतिबद्धता दर्शाने बोल-चाल में ये लोग अपने क्षेत्र को गाजा पट्टी कहने लगे हैं. कब से, किसने शुरुआत की, इसका सटीक और एक सा जवाब नहीं मिलता लेकिन गाजा पट्टी का मतलब सबको पता है.

ये है सादुलपुर की ‘गाजा पट्टी’ के गांव

चुरू में राजगढ़ तहसील के गांव; नवा, चांदगोठी, नीमा, बेवड़,हमीरवास, जसवन्तपुरा समेत कई गांवों में पूनिया गोत्र के वोटों की बहुलता इस सीट के राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करती है. सादुलपुर विधानसभा सीट के कुछ गांवों के समूह को जातिगत समीकरणों की वजह से ये नाम मिला है. क्यों, कब से, कैसे इन सवालों का जवाब यहां सभी के लिए अलग-अलग है. क्योंकि गाजा पट्टी शब्द का इस्तेमाल यहां जातिगत एकजुटता दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है .

सादुलपुर सीट के जातिगत समीकरणों का अनुमान

50-60 हजार पूनिया गोत्र के जाट, 40-45 अन्य गोत्र जाट,लभगभ 40 हजार एससी, 12-13 हजार मुस्लिम, राजपूत -10-12 हजार, ब्राम्हण – 10-12 हजार, एसटी -5 हजार

सादुलपुर का राजनीतिक इतिहास

इस सीट पर 1993 के बाद से कोई भी नेता विधायकी रिपीट नहीं कर पाया है. सादुलपुर विधानसभा सीट पर पिछले 15 सालों से त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है. यहां भाजपा और कांग्रेस को बसपा से कड़ी चुनौती मिल रही है. 2018 के चुनावों में यहां मनोज न्यागली चुनाव हारे और कृष्णा पूनिया के रूप में नए चेहरे को जनता ने चुना. 2018 के चुनाव में बीजेपी यहां तीसरे स्थान पर रही. इस क्षेत्र में, जाट मतदाताओं का दबदबा रहा है.

दोनों ही प्रमुख पार्टियों से जाट और कांग्रेस की पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों की वजह से पूनिया वोट बैंक वाला गाजा पट्टी नवा क्षेत्र सुर्खियों में है. गत चुनाव में कांग्रेस ने नंदलाल पूनिया के बजाय कृष्णा पूनिया को टिकट दिया था. इस बार भी पूनिया को लगा कि वे टिकट से वंचित रहने वाले हैं. ऐसे में उन्होंने भाजपा का दामन थामा और अपनी बहू सुमित्रा पूनिया को टिकट दिलवा दी है.

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