यमकेश्वर विधानसभा में मतदाताओं के मौन होने से राजनीतिज्ञों के मतदाता समीकरणों को हल करने में छूट रहे हैं पसीने
यमकेश्वर:- इस बार यमकेश्वर विधानसभा का चुनाव बड़ा ही रोचक होता जा रहा है। यमकेश्वर विधानसभा में मुख्यतः मुकाबला बीजेपी और काग्रेंस के बीच ही है। लेकिन यूकेड़ी ने भी दोनों दलों के लिए मुसीबत बढायी हुई है। हालांकि राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यूकेड़ी के मत प्रतिशत बढने से बीजेपी को ज्यादा नुकसान होगा, लेकिन कहीं ना कहीं काग्रेंस को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, बीजेपी और काग्रेंस दोनों ही दमखम लगा रहे हैं। जहॉ एक ओर बीजेपी डाडामंडी और घट्टूगाड़ में हुई रैली में आयी भीड़ को सोशल मीडिया के माध्यम से जनता तक पहॅुचा रही है, लेकिन वहॉ रैली में कार्यकर्ता अधिक और अन्य क्षेत्र से आये लोगों की भीड़ ज्यादा है, क्योंकि जनता इस बार बाहर नहीं निकल रही है। वहीं काग्रेंस के समर्थकों में जहॉ जोश है, वहीं अंदर से पूरी तरह से आश्वस्त नजर नहीं आ रहे हैं।
इस बार जनता के मौन होने से बीजेपी को भी हाथ से सीट जाने का डर उनके अंदर व्याप्त है। वहीं कागें्रस भी सधे कदमों से आगे बढ रही है। काग्रेंस भी पूरी तरह से जीत के प्रति अभी आश्वस्त नहीं है। वहीं यूकेड़ी की बात की जाय तो यूकेड़ी के लिए खोने के लिए कुछ नहीं है, और उसके लिए सिर्फ पाने के लिए है। ऐसें में यूकेड़ी काग्रेंस और बीजेपी से नाराज मतदाताओं को अपने पक्ष में मतदान करवाने के लिए पूरी ताकत झोकती नजर आ रही है।
वहीं दोनों राष्ट्रीय दलों के राजनीतिकारों के लिए इस समय मतदान समीकरणों को बनाने मेंं माथे पर पसीना नजर आ रहा है। इस बार यमकेश्वर विधानसभा सीट का मतदाता मौन साधकर बैठा है, और मतदान किसके पक्ष में करना है, पहले ही तय कर चुका है। बीजेपी का संगठन मजबूत अवश्य है, लेकिन कार्यकर्ता में पूर्णतः एकजुटता नजर नहीं आ रही है। महिलाओं में अभी भी मोदी लहर का प्रभाव झलक रहा है, जो कि बीजेपी के लिए फायदेमंद है, और काग्रेंस के लिए हानिकारक। वहीं दूसरी ओर युवा कहीं ना कहीं इस बार यमकेश्वर में विकास के मुद्दों पर मतदान करने के पक्ष में है, अतः वह परिवर्तन की राह पर चलता दिखाई दे रहा है। ऐसे में यमकेश्वर में राजनीतिक समीकरणों पर स्पष्ट कोई भी नहीं कह पा रहा है।
वहीं तीनों प्रत्याशी की बात की जाय तो जहॉ तक बीजेपी प्रत्याशी संगठनात्मक तौर पर मजबूत है, वहीं काग्रेंस के प्रत्याशी का कैडर वोट और उनके साथ जुड़ा व्यक्तिगत मतदाता अधिक है। ऐसे में दोनों प्रत्याशियों मजबूती से आगे तो बढ रहे हैं, लेकिन जीत के प्रति अभी पूरी तरह से आश्वस्त नहीं है। बीजेपे को कहीं ना कहीं इस बार सीट हाथ से जाने का संशय बना हुआ है, वहीं काग्रेंस और यूकेडी के पास खोने के लिए कुछ नहीं हैं, इसलिए उनका आत्मविश्वास यथावत है, हालांकि काग्रेंस की साख भी इस बार दावं पर लगी हुई है। राजनीतिक प्रकांडों का मानना है कि इस बार जीत का अंतर बहुत कम रहेगा, क्योंकि इस बार सभी प्रत्याशी मजबूत हैं, और जनता का मौन होना भी सभी प्रत्याशियों के लिए संशय बना हुआ है, और समीकरण निकालने वाले राजनीतिज्ञों के लिए एक पहेली।